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Shri Rana bhai story in Hindi

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 भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी हरनावा: भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी राजस्थान के नागौर जिले के हरनावा गांव की प्रसिद्ध कवियत्री और वीर स्त्री के नाम से प्रसिद्ध है। हरनावा की धरती पर जन्म लेने वाली श्री रानाबाई जी ने अपने जीवन में कई रचनाएं की और माना जाता है कि हरनावा की धरती पर कई भूत प्रेत रहते थे जिनको खत्म कर अपना परचम लहराया। श्री रानाबाई जी को मारवाड़ की दूसरी मीरा के नाम से भी जाना जाता है। श्री रानाबाई जी धूण गोत्र की जाट थी। इनके पिता का नाम जालम सिंह था। भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी के गुरु चतुरदास जी थे जिनका समाधि स्थल बुटाटी में स्थित है। श्री रानाबाई जी की कहानी मैं इस पोस्ट के माध्यम से बताने जा रहा हूं अगर आपको यह कहानी अच्छी लगती है तो आप इस कहानी को अपने दोस्तों में सोशल मीडिया के माध्यम से शेयर जरूर करें।



भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी

भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी की कहानी विकिपीडिया पर भी उपलब्ध है इसलिए उनके जन्म तारीख और माता पिता के नाम नहीं बता सकते। भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी का जन्म हरनावा की धन्य धरा पर हुआ था। श्री रानाबाई जी के पिता जी नागौर जिले के खियाला नमक गांव से अपना खेती का लगान भर कर वापस गांव लौट रहे थे तभी रास्ते में एक तालाब में भूतों ने घेर लिया था। उनका कहना था कि भूतों के मुखिया बोहरा भूत से कराने की शर्त रखी। जालम सिंह जी को कहा गया था कि अगर वह अपनी पुत्री रानाबाई जी का विवाह हमारे मुखिया के साथ नहीं कराया गया तो हम आप को मार डालेंगे। जालम सिंह जी चिंता में और शोक में डूब गए। वह अत्यधिक चिंतित होकर घर की ओर रवाना हो गए। घर जाकर जालम सिंह जी एक जमीन पर बैठ गए और अपनी पुत्री के बारे में चिंता करने लगे। तभी भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी अपने पिताजी से पूछती है कि पिता जी आज आप इतने उदास क्यों हो। फूल जैसे मुख पर आज कांटे कैसे निकल आए। भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी के पिताजी ने रानाबाई जी को पूरी कहानी बताई और कहा कि मैं भूतों को आपसे शादी करने के लिए हां कर दी है। सारे भूत बारात लेकर जल्द ही पहुंछ रहे हैं। श्री रानाबाई जी की अपने गुरु चतुरदास जी को याद किया और जब भूत बारात लेकर रानाबाई जी के घर पहुंचे तो ईश्वरीय शक्ति से सारे भूतों का विनाश कर दिया। सारे भूत समुदाय को खत्म कर दिया। इस घटना के बाद भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी ने जीवन में कभी भी शादी नहीं करने का फैसला लेती है। कहती है कि मैं पूरे जीवन कुंवारी ही रहूंगी। मैं अपने जीवन में कभी भी किसी को अपना जीवनसाथी नहीं बनाऊंगी। इस प्रकार भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी हरनावा गांव के एक तालाब के सारे भूतों को खत्म कर अपना परचम लहराया।


भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी एक कवियत्री भी थी। भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी के द्वारा लिखे गए पदों को पदावली कहां जाता है। भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी के द्वारा रची हुइ रचना सामान्य लय रची गई थी। 


श्री रानाबाई जी से जुड़ी एक और कहानी

भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी चतुरदास जी की शिष्या होने के साथ-साथ भगवान राम की भक्ति की थी जिसके कारण रानाबाई जी में ईश्वरी शक्ति आ गई थी। एक समय की बात है जब बोरावड के राजा युद्ध के लिए जा रहे थे। यह युद्ध अहमदाबाद में होने वाला था। जोधपुर के राजा का साथ देने के लिए बोरावड के राजा जोधपुर की ओर जा रहे थे। चलते चलते रास्ते में रात हो गई जिसके कारण बोरावड के राजा ने अपने सैनिकों के साथ हरनावा गांव में तंबू लगवा दिए। रात को बोरावड़ के राजा हरनावा में ही ठहरे थे। वहां पर रानाबाई जी के काफी चर्चे चल रहे थे। भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी के चर्चे सुनकर बोरावड के राजा भी रानाबाई जी के दर्शन करने के लिए चले गए थे। जाने के बाद देखा कि रानाबाई जी गोबर से थेपड़ीया बना रही थी। रानाबाई जी के हाथ गोबर से लथपथ थे। बोरावड के राजा रानाबाई जी को प्रणाम करते हुए आशीर्वाद मानते हैं कि मुझे आशीर्वाद दो कि मैं बादशाह को रणभूमि में हराकर ही वापस लौटू। भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी गोबर से लथपथ हाथ राजा के पीठ पर लगाती है। वह गोबर केसरिया रंग में परिवर्तित हो गया था। यह देखकर राजा अचंभित हो गए थे। रानाबाई ने कहा कि मैं तुम्हारे साथ हूं जब तक तुम्हें यह मेरा हाथ दिखाई दे तब तक युद्ध करते रहना तुम्हारी विजय अवश्य होगी। बोरावड के राजा ने रानाबाई जी को वचन दिया कि अगर मैं युद्ध में विजय हुआ तो आप के दर्शन करके जरूर जाऊंगा। 


बोरावड के राजा हरनावा से अपनी सेना के साथ कूच कर जाते हैं। युद्ध में बोरावड के राजा की विजय होती है। विजय की खुशी में बड़े ही धूमधाम से राजा वापस बोरावड पहुंच जाते हैं। जीत की खुशी में बोरावड के राजा श्री रानाबाई जी को भूल जाते हैं। उन्हें अपना दिया हुआ वचन याद नहीं रहता कि मुझे रानाबाई जी के दर्शन करने चाहिए। जब बोरावड के राजा गढ़ में प्रवेश कर रहे थे तब उनके हाथी गढ़ के दरवाजे से प्रवेश नहीं कर पाते हैं। यह देख कर बराबर के राजा अचंभित हो जाते हैं और सोच में पड़ जाते हैं कि पहले तो हाथी गढ़ के अंदर आ जाते थे अब क्या हो गया। बोरावड के राजा काफी देर तक सोच विचार करते हैं तब उन्हें याद आता है कि मुझे पहले श्री रानाबाई के दर्शन करने होंगे। बड़े ही ठाट बाट के साथ राजा भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी के दर्शन करने के लिए हरनावा आ जाते हैं। हरनावा आने के बाद बोरावड के राजा श्री रानाबाई जी से शमा याचना करते हैं। भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी मारवाड़ के राजा को माफ कर देती है और उन्हें अपना आशीर्वाद प्रदान करती है। 


रानाबाई के द्वारा बोरावड के राजा के कपड़ों पर गोबर से लथपथ हाथ जो कि केसरिया रंग में बदल गया था वह कुर्ता आज भी बोरावड के गढ़ में स्थित है। इस प्रकार रानाबई ने अपने जीवन ईश्वरी शक्ति प्राप्त की और बुराई को समाप्त करने के लिए सारे भूतों को खत्म कर दिया था। 


भक्त शिरोमणि श्री रानाबाई जी की कहानी हमारे द्वारा बताई गई अच्छी लगती है तो आप इस पोस्ट को सोशल मीडिया के माध्यम से अपने दोस्तों में शेयर जरूर करें। राजस्थान के शूरवीर, कॉमेडियन, सिंगर, कवि, डांसर, और लोक देवताओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए निरंतर हमारी वेबसाइट का अवलोकन करते रहे। 


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